मुख्य कोच ग्राहम रीड ने दिया इ​स्तीफा, क्या और बदलाव होंगे

फोटोः साभार द टाइम्स आफ इंडिया

भोपाल। भारतीय पुरुष हॉकी टीम के विश्व कप हॉकी चैंपियनशिप में खाली हाथ रहने से देशवासियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। इससे उड़ीशा सरकार विशेष रूप से नवीन पटनायक को भी बड़ा झटका लगा है। उड़ीसा, हॉकी टीम का प्रायोजक है और उड़ीसा ने टीम की जीत पर हर खिलाड़ी को एक—एक करोड़ रुपए देने की घोषणा कर देशभर के खेल प्रेमियों में एक तरह से रोमांच पैदा कर दिया था। इससे लोगों की उम्मीदें और बढ़ गईं थी। उम्मीद लगाई जा रही थी कि ईनाम की घोषणा से खिलाड़ियों में और जोश बढ़ेगा, खिताब के लिए जी—जान लगा देंगे। विश्व कप हॉकी टूर्नामेंट में नौवें स्थान पर रहने से सारी संभावनाओं को पलीता लग गया है। भारत ने 47 साल पहले यानी 1975 में हॉकी विश्व कप जीता था। वर्ष् 2018 के बाद लगातार दूसरी बार उड़ीसा में विश्व कप हॉकी का आयोजन किया गया।

पूरे टूर्नामेंट में सिर्फ एक हार, टीम की गलतियों पर मरहम तो लगा सकती है, पर घर में खाली हाथ रहने के कष्ट से छुटकारा नहीं दिया सकती है। इतना, जरूर है कि हॉकी विश्लेषक किन्तु—परन्तु लगाकर यह बता सकते हैं कि एक मैच गंवाने और एक बराबरी का खेलने के अलावा टीम टूर्नामेंट में अच्छा खेली है। लेकिन इसका जबाव उनके पास भी नहीं है। छठवीं रैंकिंग वाली भारतीय टीम 12वें पायदान की न्यूजीलैंड टीम से क्यों हार गई? न्यूजीलैंड के खिलाफ भारतीय खिलाड़ियों ने जिस लचर खेल का प्रदर्शन किया था, उसकी जितनी निंदा की जाए कम है। न तो हमारे विंगर चले और न ही हमारी फारवर्ड लाइन ने कोई  चमत्कार किया। जिसकी सभी को उम्मीद थी। यह तो सभी को पता था कि विश्व कप में आने वाली टीमें कड़ी मेहनत और बेहतर कॉ​म्बिनेशन लेकर आती हैं। हॉकी में सटीकता बहुत जरूरी है। जो हमारे फ्लिकर्स में दिखाई नहीं दी। क्रासओवर मैच में न्यूजीलैंंड से सडनडेथ में 5—4 से हारने के बाद भारतीय की खिताबी उम्मीदों पर विराम लग गया था। भारतीयों के लिए एक तरह से टूर्नामेंट का समापन ही हो गया था। हालांकि बाद के मैचों में जापान को आठ गोल से तथा दक्षिण अफ्रीका को 5—2 से हराना, भारतीय टीम प्रबंधन को राहत जैसा हो सकता है लेकिन इससे टीम के खराब प्रदर्शन पर लगा दाग नहीं छिप सकता है। हालां​कि अब टीम प्रदर्शन की समीक्षा करने का समय कम बचा है, क्योंकि अगले साल पेरिस ओलंपिक है। जिसके लिए गलतियों से सीख लेकर टीम तैयार करना बड़ा मुद्दा है।

फोटोः साभार एबीपी न्यूज

कोच ग्राहम रीड का इस्तीफा के मायने:

भारतीय टीम की अपने घर में ही खाली हाथ रहने के बाद मुख्य कोच ग्राहम रीड का इस्तीफे के कई मायने निकाले जा रहे हैं। यूं तो वर्षों से यह सिलसिला चला आ रहा है कि किसी बड़े टूर्नामेंट में हारने के बाद कोच पर दबाव बनाया जाता है या फिर खुद कोच इस्तीफा दे देता है। इसके अलावा टीम चयन में कोच की इच्छा के विपरीत टीम में कुछ खिलाड़ियों को शामिल करवा दिया जाता है। जिसकी पीड़ा से तंग कोच टूर्नामेंट के तत्काल बाद खुद को टीम से अलग कर लेता है। यहां भी टीम में कुछ खिलाड़ियों के चयन पर हॉकी इंडिया के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र बत्रा ने सवाल किए थे और आशंका जताई थी कि मुख्य खिलाड़ियों के चोटिल होने पर टीम कमजोर हो जाएगी और जिसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इसके अलावा बत्रा के समय में ही मुख्य कोच ग्राहम रीड से अनुबंध हुआ था। यानी एक तरह से बत्रा ही रीड को लेकर आए थे। और अब हॉकी इंडिया के नए अध्यक्ष दिलीप टिर्की हैं। वे बीजू जनता दल से राज्य सभा सांसद हैं। साथ ही भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान रहे हैं। उड़ीशा हॉकी इंडिया का मुख्य प्रायोजक भी है। एक तरह से देश की हॉकी उड़ीसा से संचालित हो रही है।