4-4 एस्ट्रोटर्फ ग्राउंड फिर भी जीवाजी विश्वविद्यालय मिट्टी के मैदान पर करा रहा टूर्नामेंट
ग्वालियर में हॉकी से खिलवाड़ हो रहा है और सब धृतराष्ट की तरह देख रहे हैं। यह सब महान हॉकी खिलाड़ी कैप्टन रूप सिंह के शहर में हो रहा है। जिसने जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर के प्रस्ताव को भी ठुकरा दिया था। यदि वे आज दुनिया में होते तो कम से कम सवाल तो उठाते ही।
जीवाजी विश्वविद्यालय आज-कल पश्चिम क्षेत्रीय अंतर विश्वविद्यालयीन पुरुष हॉकी चैँपियनशिप की मेजबानी कर रहा है। आयोजकों ने सारी लाज- शर्म और नियम कायदों को तांक पर रख दिया है। हद तो यहां तक हो गई है कि अपनी ही बनाई परम्पराओं को खुद जीवाजी विश्वविद्यालय मटियामेट कर रहा है। यह सब किसकी सलाह और कहने पर हो रहा है… यह बड़ा सवाल है। यहां बता दें तीस साल पहले जीवाजी विश्वविद्यालय की मेजबानी में अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालय हॉकी चैंपियनशिप रेलवे हॉकी स्टेडियम में आयोजित की गई थी। तब ग्वालियर में एक मात्र एस्ट्रोटफ मैदान हुआ करता था। जहां एस्ट्रोटर्फ पर खिलाड़ियों ने कौशल दिखाया था। ….कौशल भी ऐसा कि जीवाजी विश्वविद्यालय की हॉकी टीम चैंपियन बनी थी। तभी से नियम और देश की जरूरत बन गई थी कि आगे अंतर विश्वविद्यालय स्तर के हॉकी टूर्नामेंट एस्ट्रोटर्फ पर हों।
पूरे तीस साल ज्यादा हो चुके हैं। बावजूद इसके जीवाजी विश्वविद्यालय ….पश्चिम क्षेत्रीय अंतर विश्वविद्यालयीन हॉकी प्रतियोगिता मिट्टी के मैदान पर करा रहा है। यह सब तब हो रहा है जब ग्वालियर में चार-चार एस्ट्रोटर्फ मैदान हैं। दो मैदान मध्यप्रदेश राज्य महिला हॉकी अकादमी में हैं, तो एक मैदान महारानी लक्ष्मीबाई शारीरिक शिक्षा संस्थान (एलएनआईपीई) और एक रेलवे इंस्टीट्यूट में स्थित है। इस सब के बावजूद …पता नहीं जीवाजी विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग को किसने पाठ पढ़ा दिया कि टूर्नामेंट मिट्टी के मैदान पर करा लो। सो कराने लगे। हॉकी का स्तर वर्तमान में इतना ऊपर उठ चुका है जिसकी जीवाजी विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभाग कल्पना ही नहीं कर है। यदि ऐसा है तो विभाग को बंद क्यों नहीं कर देते। आखिर विश्वविद्यालय, शारीरिक शिक्षा के छात्रों को क्या सिखाने चाहता है ? हम तो ईश्वर से यही प्रार्थना करेंगे कि ऐसे लोगों को बड़े हॉकी टूर्नामेंट कराने का विचार भी न दे, वरना ये हमारी हॉकी को पलीता लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।
अब टूर्नामेंट में एक और बड़ा अपसेट देखिए…, हॉकी के दो मैदानों को बिलकुल सटाकर बना दिया है (चित्र में भी स्पष्ट है) और दोनों पर लगातार मैच कराए गए। दोनों मैदानों के गोल पोस्ट में इतनी भी जगह नहीं रखी गई कि एक व्यक्ति भी वहां से ठीक से निकल जाए। यह हॉकी टूर्नामेंट के सामान्य व्यवहार के खिलाफ ही नहीं वरन नियमों के विरुद्ध भी है।
अब हालत यह हुए कि ग्राउंड नंबर एक का अम्पायर व्हीसिल बजाता है और ग्राउंड नंबर दो पर खेल रहे खिलाड़ी भ्रमित हो रहे। एक नंबर ग्राउंड की गेंद दूसरे ग्राउंड और दूसरे ग्राउंड की गेंद एक नंबर ग्राउंड में जाने भी लगातार व्यवधान पड़ता रहा। मैच खेल रहे खिलाड़ी घनचक्कर थे और शिक्षक मस्ती में। अब आयोजन सचिव प्रो. विवेक बापट कह रहे हैं। मुझे तो हॉकी का ज्यादा ज्ञान नहीं है। हॉकी से जुड़े स्पोर्ट्स ऑफिसर्स ने जो बताया वही हो रहा है। अरे भाई, जिस मामले में अपने को ज्ञान नहीं होता तो ऐसे में संबंधित खेल के विशेषज्ञों से राय ली जानी चाहिए…. कम से कम विश्वविद्यालय की गरिमा की तो चिंता की जानी चाहिए। हॉकी इंडिया और अखिल भारतीय विश्वविद्यालय खेल संघ का भी नियम है कि प्रथम श्रेणी के हॉकी टूर्नामेंट एस्ट्रोटर्फ पर ही कराए जाएं। लेकिन जीवाजी विश्वविद्यालय में चल रहे हॉकी टूर्नामेंट में सब धक रहा है। इससे जीवाजी विश्वविद्यालय और ग्वालियर की महान हॉकी परम्परा की भी जग हंसाई हो रही है। जिस शहर ने महान हॉकी खिलाड़ी कैप्टन रूपसिंह, एक मात्र विश्व कप चैंपियन भारतीय हॉकी टीम के खिलाड़ी शिवाजी पवार, ओलंपियन और भारतीय पुरुष हॉकी टीम के सहायक कोच शिवेंद्र सिंह, कमाल के फारवर्ड हसरत कुरैसी जैसे खिलाड़ी दिए हैं ….यह लाइन लगातार बढ़ती जा रही है जिसमें अरमान कुरैशी, करिश्मा यादव, इशिका चौधरी, अंकित पाल और हिमांशु सैनिक जैसे खिलाड़ी सुमार हैं, उस ग्वालियर शहर में हॉकी का बड़ा टूर्नामेंट मिट्टे के मैदान पर कराना निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है। इसकी सजा तो हमारी हॉकी प्रतिभाओं काे चुकाना ही पड़ेगी और चुका भी रहे हैं। मेजबान जीवाजी विश्वविद्यालय की टीम अपना पहला मैच ही सात गोल से हार कर बाहर हो गई है। वो बात अलग है कि शुरुआती दे मैचों में वाकओवर से बिना मैच के पीठ थपथपा ली।
मिट्टी के मैदानों पर चोटी आशंका ज्यादा:
तकनीकी रूप से देखें तो एस्ट्रोटर्फ की तुलना में मिट्टे के मैदान पर खिलाड़ी चोटिल भी ज्यादा होते हैं। टूर्नामेंट में भी कई खिलाड़ी गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इसके अलावा एस्ट्रोटर्फ पर गेंद सरफेस से चिपक कर रोल करती है जबकि मिट्टे के मैदान पर एक मामूली सा अवरोधक भी गेंद को उछाल दे देता है जिससे चोट की आशंका हमेशा बनी रहती है।
सलाहकारों से मुक्ति से ही होगा भला:
अब हम तो यही कह सकते हैं कि करीब 57 साल पुराने जीवाजी विश्वविद्यालय और तीन दशक पहले हॉकी का अखिल भारतीय अंतर विश्वविद्यालयीन टूर्नामेंट एस्ट्रोटर्फ पर कराने वाले इसी संस्थान के वर्तनान सलाहकारों को प्रभु मुक्ति दे। तभी ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की एक मात्र सरकारी विश्वविद्यालय के खेलों का भला हो सकेगा।